गुरुवार, 16 अगस्त 2012


आस्थाएं 

आदमी की आस्थाएं
जीवन के बसंत में
कोयल सी कूकती है
और फूलों सी खिलखिला उठती है.

मई-जून की तपती दुपहरियों जैसी 
जिंदगी में भी 
लीची और आम के पके फलों की सी 
मिठास भर देती है आस्थाएं!!

टूटे हुए क्षणों में हमारी रीढ़ 
और हारे हुए क्षणों में हमारा संबल
बन जाती है आस्थाएं.

जब प्रतिकूल परिस्थितियां
हमारी कंपकपी छुटाने लगती है
तो खूबसूरत फरों का कम्बल
बन जाती हैं आस्थाएं.

आम आदमी की आस्थाएं 
कलाकार की कूंची बन 
जीवन में भर देती हैं रंग
इसलिए
रहिएगा सदा आस्थाओं के संग!!!!

           -  अनिल कुमार गुप्ता 

रविवार, 2 जनवरी 2011